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ठहराव

अब एक ठहराव सा आने लगा है..
ये ठहराव वैसा नहीं है जैसा सोचा था..
पर जैसा भी है ठीक ही है..

दिल सपने अब भी बुनता रहता है..
पर दिल और दिमाग अब उन सपनों पर लड़ते नहीं है..

दोनों में दोस्ती हो गयी है..
दोनों एक दूसरे को अपने अपने सपने बुनने देते हैं..
और उन सपनों को टूटते हुए भी मुस्कुरा के देखते हैं..

जिंदगी के मैच अब फ्रेंडली होते जा रहे हैं..
अब उनमें वैसा रोमांच नहीं रहा..
जैसा रोमांच हाफ डे के बाद स्कूल के मैदान पर खेले जाने वाले मैचों में होता था..

कॉलेज से निकलने के बाद जब
एक दशक तक नई दुनिया मे अपनी पहचान बनाने को जो जद्दोजहद चलती है..
उसे डॉक्यूमेंट भले ही कोई नहीं करता..
पर वो पहली ऐसी लड़ाई होती है जो हमने अपने दम पर लड़ी होती है..

समय समय पर कंपनियां बदलना..
युद्ध के नये मैदान चुनने जैसा होता है..

स्टार्टअप अपना साम्राज्य स्थापित करने का प्रयास होता है..

कई त्यौहार घर से दूर मनाने पड़ते हैं..
दोस्तों के शादी ब्याह पर ऑफिसों में पड़े रहते हैं..

ये सब ही तो है जो अलग अलग मोर्चों पर लड़ते हुए..
हमेशा से पीछे छूटता आया है..

पर जैसा मैंने पहले कहा..
कि अब एक ठहराव से आने लगा है..
अब शायद अंदाज़ा लग गया है कि अपनी उड़ान कितनी है..
अब शायद लगने लगा है कि अपने ऊपर और भी जिम्मेदारियां हैं..
अब गुस्सा आता तो है पर जुबान तक नहीं आ पाता..

ये न हमारी जीत है..
न ही हार है..

ये कहानी का इंटरवल है..

इस इंटरवल के बीत जाने के बाद..

हम सब ही फैसला कर रहे होंगे..

कि बाकी जीवन में दर्शक बने रहना है..

या फिर से एक बार मिडल स्टम्प का गार्ड लेकर..

लेग साइड की तरफ नज़र घुमा कर..

3 बार बल्ला जोर से जमीन पर ठोक कर "आन दे" कहते हुए

जीवन के नए चैलेंजेस का सामना करना है ❤️

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परिभाषा वाला प्रेम।

संभवतया मैं तुम्हारे जीवन में आने वाला प्रथम और आखिरी व्यक्ति होउगां जिससे किसी भी विषय पर कितने की बकैती करा लो.. पर बोल नही पाता हूं जब सामने आती हो तुम.. पर मैं नहीं सोचता कि किसी दीवार के सहारे बैठकर हम गाये प्रेम के गीत ..नहीं चाहिये मुझे तुम्हारे अधरों पर मेरे अधरों का प्रतिबिंब ...मुझे नहीं पंसद देह का गणित.. बस मेरी कल्पना ये है, कि किसी घाट या हिमालय की तराई में बैठ कर के हम दोनों चर्चा करें देश की..समाज की..धर्म की.. बाटें अपना मूल..मै अपनी कहूं.. और फिर टकटकी लगाए किसी बच्चे की मानिंद बस सुनता रहूं कि 'कैसे होतें है 'वामपंथी'...  और हां मैं हमेशा तुमसे ऐसी ही बात करता रहूंगा.. खुद तुच्छ हो सकता हूं...हो सकता है मुझे न आता हो कहना..मुझे तुम्हारी खुली जुल्फें सवारनी न आती हों पर जब मैं आखिरी सांस के बाद तुम्हे जब ईश्वर के सुपुर्द करूं तब वही पवित्रता बनी रहे जैसे तुम्हे मुझे सौंपते वक्त थी... तुमसे बस इत्तू सा इश्क है 'जाना' जानती हो क्यों? सुनना चाहोगी? क्योंकि प्रेम की पवित्रता प्रेम को पवित्र रखने में ही है.. 😊

आगे बढ़ें?

सुनो। नया साल आ रहा है। और साथ लेकर आएगा कुछ नई उम्मीदें, कुछ नई इकच्छाएँ। शायद तुम मुझे भूल जाओ, शायद मैं भी तुम्हे भूल जाऊं। लेकिन अगर तुम ये पढ़ रही जो, तो जान लो - मैं जानता हूँ तुम भी कहीं ना कहीं चाहती थीं की हम साथ हों। लेकिन वो हो ना सका। कारण जो भी जो, किसे सरोकार। इस बीतते साल के साथ उन सारी इकच्छाओं, चाहतों को समाप्त ही कर दिया जाए तो बेहतर है। तुम मजबूत हो, आगे बढ़ गयीं। या बढ़ ही जाओगी। मेरी भी कोशिश रहेगी। लेकिन ये बताओ - अगर जीवन में फिर मिले तो क्या खुश होकर मिलेंगे कि हम एक समय एक दूसरे का सादर सम्मान करते थे? 
इसीलिए मैं तेरे बिछड़ने पे सुगुवार नही, सुकून पहली जरूरत है, तेरा प्यार नहीं जवाब ढूंढने में उम्र मत गवां देना, सवाल करती है दुनिया, ऐतबार नहीं मेरे भरोसे पे कश्ती बनाना मत छोड़ो, नदी में जाना है मुझको, नदी के पार नहीं।