जानता हूँ तुम ये शायद कभी नही पढ़ोगी,
फिर भी तुम्हे लिखता हूँ
क्योंकि अब बस ऐसे ही तुमको नज़दीक पाता हूँ।
हर बार लिख नहीं पाता,
या लिखता नही,
लेकिन जब भी तुम मेरा इकलौता खयाल बन जाती हो ना,
तब ऐसे ही काग़ज और कलम के सहारे,
तुम्हे धीरे धीरे जी लिया करता हूँ।
कभी कभी अपनी यादों को अपने हिसाब से बदलता भी हूँ,
गलत है मालूम है,
लेकिन अपने आप को माफ भी कर दिया करता हूँ।
तुम ना मेरे चश्मे की तरह हो।
रात को सोने से पहले तुम्हे उतार तो सकता हूँ,
लेकिन सुबह जब तक तुम्हे वापस ना लगा लू,
कुछ भी साफ दिखाई नहीं देता।