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चल आज तुझको आज़ाद करते हैं

जो मेरी हसी, मेरे आंसू तुझपे वार रखे हैं
जिनकी तुझे खबर तक नहीं
ऐसे इल्जाम जो तुझपे लगाए,
आज उन्हें बेबुनियाद करते हैं
चल आज तुझको आज़ाद करते हैं
नहीं बताएँगे अब की कितना प्यार करते हैं।


एक छोटा सा सफर तुझसे मिलके तुझे खोने तक का
झूठ नहीं बोलूंगा वो सफर दुनिया थी मेरी
मेरी दुनिया जो तुझतक थी,
उसे भूलाकर एक नया आग़ाज़ करते हैं
चल आज तुझको आज़ाद करते हैं
नहीं बताएँगे अब की कितना प्यार करते हैं।

और तरस मत खाना मेरी सूरत देखकर 
बतलाना मुझे वही जो सच है 
तेरे दिल में मेरे लिए इश्क नहीं 
हाँ मुश्किल होगा मेरे लिए 
चल आज इस मुश्किल से डट कर लड़ते हैं 
चल आज तुझको आज़ाद करते हैं
नहीं बताएँगे अब की कितना प्यार करते हैं। 

आज एक गुजारिश है मेरी तुझसे 
की फिर मुड़कर ना देखना मुझे
तुझे मालूम नहीं की तेरी नज़र मुझपे क्या सितम ढाती है 
कही फिर न आ जाऊ तेरे पीछे, इसलिए आज आखरी बात करते हैं 
चल आज तुझको आज़ाद करते हैं
नहीं बताएँगे अब की कितना प्यार करते हैं। 


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परिभाषा वाला प्रेम।

संभवतया मैं तुम्हारे जीवन में आने वाला प्रथम और आखिरी व्यक्ति होउगां जिससे किसी भी विषय पर कितने की बकैती करा लो.. पर बोल नही पाता हूं जब सामने आती हो तुम.. पर मैं नहीं सोचता कि किसी दीवार के सहारे बैठकर हम गाये प्रेम के गीत ..नहीं चाहिये मुझे तुम्हारे अधरों पर मेरे अधरों का प्रतिबिंब ...मुझे नहीं पंसद देह का गणित.. बस मेरी कल्पना ये है, कि किसी घाट या हिमालय की तराई में बैठ कर के हम दोनों चर्चा करें देश की..समाज की..धर्म की.. बाटें अपना मूल..मै अपनी कहूं.. और फिर टकटकी लगाए किसी बच्चे की मानिंद बस सुनता रहूं कि 'कैसे होतें है 'वामपंथी'...  और हां मैं हमेशा तुमसे ऐसी ही बात करता रहूंगा.. खुद तुच्छ हो सकता हूं...हो सकता है मुझे न आता हो कहना..मुझे तुम्हारी खुली जुल्फें सवारनी न आती हों पर जब मैं आखिरी सांस के बाद तुम्हे जब ईश्वर के सुपुर्द करूं तब वही पवित्रता बनी रहे जैसे तुम्हे मुझे सौंपते वक्त थी... तुमसे बस इत्तू सा इश्क है 'जाना' जानती हो क्यों? सुनना चाहोगी? क्योंकि प्रेम की पवित्रता प्रेम को पवित्र रखने में ही है.. 😊

आगे बढ़ें?

सुनो। नया साल आ रहा है। और साथ लेकर आएगा कुछ नई उम्मीदें, कुछ नई इकच्छाएँ। शायद तुम मुझे भूल जाओ, शायद मैं भी तुम्हे भूल जाऊं। लेकिन अगर तुम ये पढ़ रही जो, तो जान लो - मैं जानता हूँ तुम भी कहीं ना कहीं चाहती थीं की हम साथ हों। लेकिन वो हो ना सका। कारण जो भी जो, किसे सरोकार। इस बीतते साल के साथ उन सारी इकच्छाओं, चाहतों को समाप्त ही कर दिया जाए तो बेहतर है। तुम मजबूत हो, आगे बढ़ गयीं। या बढ़ ही जाओगी। मेरी भी कोशिश रहेगी। लेकिन ये बताओ - अगर जीवन में फिर मिले तो क्या खुश होकर मिलेंगे कि हम एक समय एक दूसरे का सादर सम्मान करते थे? 
इसीलिए मैं तेरे बिछड़ने पे सुगुवार नही, सुकून पहली जरूरत है, तेरा प्यार नहीं जवाब ढूंढने में उम्र मत गवां देना, सवाल करती है दुनिया, ऐतबार नहीं मेरे भरोसे पे कश्ती बनाना मत छोड़ो, नदी में जाना है मुझको, नदी के पार नहीं।