वो बारिश का मौसम
वो मेरी बनायीं चाय
और वो तुम्हारे बनाये
आलू के पकोड़े।
वो सब याद है।
subah आज भी
कुछ वैसी ही है।
चाय भी।
कच्ची और फीकी।
पकोड़े नहीं है मगर।
कुछ आलू जरूर है
जो घूर रहे हैं
शायद समझते भी हैं
की उन्हें काटने का
कलेजा मुझमे नहीं।
वो मेरी बनायीं चाय
और वो तुम्हारे बनाये
आलू के पकोड़े।
वो सब याद है।
subah आज भी
कुछ वैसी ही है।
चाय भी।
कच्ची और फीकी।
पकोड़े नहीं है मगर।
कुछ आलू जरूर है
जो घूर रहे हैं
शायद समझते भी हैं
की उन्हें काटने का
कलेजा मुझमे नहीं।
तुम circle थीं
और मैं tangent..
हम ज़िन्दगी में बस
एक बार ही मिल सकते थे।
और मैं tangent..
हम ज़िन्दगी में बस
एक बार ही मिल सकते थे।