मैं इस उम्मीद पे डूबा के तू बचा लेगा अब इसके बाद मेरा इम्तेहान क्या लेगा ये एक मेला है वादा किसी से क्या लेगा ढलेगा दिन तो हर एक अपना रास्ता लेगा मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊंगा कोई चराग़ नहीं हूं जो फिर जला लेगा कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए जो बे-अमल है वो बदला किसी से क्या लेगा मैं उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे सुनेगा तो लकीरें हाथ की अपनी जला लेगा हज़ार तोड़ के आ जाऊं उस से रिश्ता वसीम मैं जानता हूं वो जब चाहेगा बुला लेगा -वसीम बरेलवी-
Because every bright silver lining has an associated dark cloud