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Showing posts from June, 2017
एक कोपल सी थी वो  जब मैंने उसे देखा, आँगन में अलग ही चमक ले आयी थी  ध्यान रखता मै उसका  पास ना आने देता उन बेलों को, कुछ उनके लिपटने से जलता था और कुछ डर भी था  उसके बहक जाने का  जड़ें बहुत अलग थी हमारी  और मेरी कुछ रूढ़ि,  जमीन से जोड़े रखती कल देखा उसे काटकर उसको दरवाजा बनाने वाले हैं।