यू तो फूल भी काफी हैं दर्द जगाने को,
जख्मी हो मेरा दिल खार से ही, ये ज़रूरी तो नहीं !
ऐसा नहीं की गम मुझे होता नहीं,
मुफलिसी में रोता रहूँ, ये भी ज़रूरी तो नहीं !
करने लगूंगा फिर से तुम्हारा ऐतबार दोस्तों
ज़ख्म ताज़े हैं अभी, भरोसा अभी होता तो नहीं !
मंजिल तू इंतज़ार कर कि मैं आऊंगा ज़रूर
मैं बस हारा हूँ रास्तों से... मगर लौटा तो नहीं !
मैं बस हारा हूँ रास्तों से... मगर लौटा तो नहीं !
जख्मी हो मेरा दिल खार से ही, ये ज़रूरी तो नहीं !
ऐसा नहीं की गम मुझे होता नहीं,
मुफलिसी में रोता रहूँ, ये भी ज़रूरी तो नहीं !
करने लगूंगा फिर से तुम्हारा ऐतबार दोस्तों
ज़ख्म ताज़े हैं अभी, भरोसा अभी होता तो नहीं !
मंजिल तू इंतज़ार कर कि मैं आऊंगा ज़रूर
मैं बस हारा हूँ रास्तों से... मगर लौटा तो नहीं !
मैं बस हारा हूँ रास्तों से... मगर लौटा तो नहीं !