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वक़्त का दरिया

कितना वक़्त  खोया  मैंने , खोने  को  और  पाने  को ,
काश  की  ये  वक़्त  मिल  जाता , फिर  से  मुझे  बिताने  को  ...

फ़रियाद  किया ,याद  किया , कितना  वक़्त  बर्बाद  किया ,
हँसा -रोया -गाया , पर  आवाज़  नहीं  पहुंची  मेरी ,
जाता  रहा  मूरत  के  आगे  घंटी  मगर  बजाने  को ..

जज्बातों  की  तपिश  में  चमका  करता  था ,
एक  हलकी  सी  बारिश  में  सब  कुछ  बह  गया ,
किसने कहा  था  मुझे , रेत  का  घर  बनाने  को ..

कभी  रिश्तों  का  नाम  दिया  था  जिनको  मैंने ,
आज  सब  किश्तों  में  अदा  करता  जाता  हूँ  मैं ,
मेरे  बदले  कौन आएगा  मेरा  क़र्ज़  चुकाने  को ..

एक  अभिनेता  है   जो  हर  पल  अभिनय  करता  है ,
है  चेहरे  पर  जिसके  एक  हसीन  सा  नकाब ,
और  एक  हसी  का  मुखौटा  दुनिया  को  दिखाने  को ..

पूरा  करती  तुम  मुझे  तो  कोई  बात  भी  थी ,
पूरी  बात  ये  है  की  तुम  मेरा  अधूरापन  हो ,
मैं  तुम्हारी  ओर  आता  हूँ , बस  वापस  लौट  जाने  को ..

उसने  जो  पूछा , 'लिखने  का  वक़्त  मिल  जाता  है ',
लिखने  के  लिए  सांस  तो  कई सारे  लेते  है ,
मैं  लिखता  हूँ  मगर , सांस  ले  पाने  को ..

ये  गयी , वो  गयी , और  जब  'वो'  भी  चली  गयी ,
तो  मेरी  कविता  आई  और  मेरा  हाथ  पकड़ा ,
हमेशा  हूँ  तैयार , तेरे  साथ  वक़्त  बिताने  को ..

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परिभाषा वाला प्रेम।

संभवतया मैं तुम्हारे जीवन में आने वाला प्रथम और आखिरी व्यक्ति होउगां जिससे किसी भी विषय पर कितने की बकैती करा लो.. पर बोल नही पाता हूं जब सामने आती हो तुम.. पर मैं नहीं सोचता कि किसी दीवार के सहारे बैठकर हम गाये प्रेम के गीत ..नहीं चाहिये मुझे तुम्हारे अधरों पर मेरे अधरों का प्रतिबिंब ...मुझे नहीं पंसद देह का गणित.. बस मेरी कल्पना ये है, कि किसी घाट या हिमालय की तराई में बैठ कर के हम दोनों चर्चा करें देश की..समाज की..धर्म की.. बाटें अपना मूल..मै अपनी कहूं.. और फिर टकटकी लगाए किसी बच्चे की मानिंद बस सुनता रहूं कि 'कैसे होतें है 'वामपंथी'...  और हां मैं हमेशा तुमसे ऐसी ही बात करता रहूंगा.. खुद तुच्छ हो सकता हूं...हो सकता है मुझे न आता हो कहना..मुझे तुम्हारी खुली जुल्फें सवारनी न आती हों पर जब मैं आखिरी सांस के बाद तुम्हे जब ईश्वर के सुपुर्द करूं तब वही पवित्रता बनी रहे जैसे तुम्हे मुझे सौंपते वक्त थी... तुमसे बस इत्तू सा इश्क है 'जाना' जानती हो क्यों? सुनना चाहोगी? क्योंकि प्रेम की पवित्रता प्रेम को पवित्र रखने में ही है.. 😊

आगे बढ़ें?

सुनो। नया साल आ रहा है। और साथ लेकर आएगा कुछ नई उम्मीदें, कुछ नई इकच्छाएँ। शायद तुम मुझे भूल जाओ, शायद मैं भी तुम्हे भूल जाऊं। लेकिन अगर तुम ये पढ़ रही जो, तो जान लो - मैं जानता हूँ तुम भी कहीं ना कहीं चाहती थीं की हम साथ हों। लेकिन वो हो ना सका। कारण जो भी जो, किसे सरोकार। इस बीतते साल के साथ उन सारी इकच्छाओं, चाहतों को समाप्त ही कर दिया जाए तो बेहतर है। तुम मजबूत हो, आगे बढ़ गयीं। या बढ़ ही जाओगी। मेरी भी कोशिश रहेगी। लेकिन ये बताओ - अगर जीवन में फिर मिले तो क्या खुश होकर मिलेंगे कि हम एक समय एक दूसरे का सादर सम्मान करते थे? 
इसीलिए मैं तेरे बिछड़ने पे सुगुवार नही, सुकून पहली जरूरत है, तेरा प्यार नहीं जवाब ढूंढने में उम्र मत गवां देना, सवाल करती है दुनिया, ऐतबार नहीं मेरे भरोसे पे कश्ती बनाना मत छोड़ो, नदी में जाना है मुझको, नदी के पार नहीं।